मैं ख़ुद से खफा खफा सा हूँ.
>> Saturday, March 8, 2008
मैं ख़ुद से खफा खफा सा हूँ,
न जाने क्या वजह है के तनहा सा हूँ।
क्या पत्थर बन गया है दिल मेरा,
या पत्थर पे पड़ा आइना सा हूँ।
मैं ख़ुद से खफा खफा सा हूँ।
क्या वजह है के सितम कर रहा हूँ अपनों पे ही मैं,
क्यों दूसरों के साए से भी शर्मिंदा सा हूँ।
मैं ख़ुद से खफा खफा सा हूँ।
मुझे तन्हाई ही सुहाने लगी है क्यों,
क्यों मैं अकेले रहने पे ही आमादा हूँ।
मैं ख़ुद से खफा खफा सा हूँ।
के मुझे मौत देदे मेरे खुदा अब तो,
के ज़िंदगी से मैं अब हारा सा हूँ।
मैं ख़ुद से खफा खफा सा हूँ।
यूं तो बदतमीज़ या बद्क़लाम नही था मैं कभी भी,
पर क्या वजह है के हो गया बद अखलाक सा हूँ।
मैं ख़ुद से खफा खफा सा हूँ.
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