bahana
>> Sunday, February 24, 2008
किताब साथ हो लिखने का बहाना भी बने
लिखते रहें हम रात भर, और चिराग का सहारा भी बने
हज़ार ख्याल दिल में उतर जाते हैं तो क्या
इन्हे उतरने के लिए कागज़ की सीढियों का सहारा भी मिले
कसूर था, मेरा जो मैंने किया उस दिन
मेरे हर गुनाह को बताने वाला भी मिले
के ग़म ही नही दुनिया में जो तकलीफ देता है
कभी खुश रहना भी तकलीफ वाला लगे
मुझे चाहता तो बहोत था की तुझे भूल जाओं में
मगर वो क्या करे जिसकी यादों का दुश्मन ज़माना लगे।
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