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याद चलकर क्यों मेरे पास आ ही जाती है!

>> Tuesday, February 26, 2008

फिर याद चलकर मेरे पास क्यों आती है,
में जितना भागता हूँ इससे ये उतना क़रीब आती है।

यादें कुछ अच्छी, कुछ बुरी होती हैं ज़िंदगी में,
हर एक याद में एक ज़िंदगी गुज़र जाती है

सितम है अब ज़िंदगी पर यादों का भी ,
ये क्यों आती हैं ये क्यों जाती हैं।

सुहाना था कितना सफर, कितने ग़म थे गुज़रे
ये वो रेलगाडी है जो तसव्वुर के हर स्टेशन पर रुक के आती है।

मुबारक हो सभी को सफर यादों का, न आंसूं किसी की आँख से गुज़रे
हमारे साथ तो जालिम आज भी, जब भी आती है बहुत रुलाती है.

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