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तलब न होती मुहब्बत की तो ज़िंदगी मुश्किल होती!

>> Monday, May 26, 2008

तलब न होती मुहब्बत की तो ज़िंदगी मुश्किल होती,
किसी को भी दुआ की ज़रूरत न होती।

अगरचे नही होता दिल में किसीके लिए प्यार,
तो इस दुनिया में इबादत की ज़रूरत नहीं होती।

के इनकार कर नही सकते मुहब्बत के दुश्मन कभी भी,
वो भी नही होते अगर इस जहान में मुहब्बत नही होती।

मैं जानता हूँ मेरे मुंह से उसे ये बात पसंद न आएगी,
मगर हर दिल की बात किसीको मालूम नही होती।

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तेरे इंतज़ार में इस चोखट पे एक चिराग जलाकर रखा है!

तेरे इंतज़ार में इस चोखट पे एक चिराग जलाकर रखा है,
तेरी याद को अब तक सीने से लगाकर रखा है।

हम तो अब हँसते भी नही खुलकर किसीके सामने,
इस हंसी को बस एक तेरे वास्ते संभाल रखा है।

गुलाबी होती है जब डाली फूलों के भर जाने से,
हमने तेरा चेहरा उसमें मुस्कुराते देखा है।

तड़प देखी है तेरी यादों में, अंधेरे में उजाला देखा है,
एक तूने ही नही देखा, सारे आलम ने ग़म मेरा देखा है।

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मुहब्बत का फ़र्ज़ न निभा पाओगे. ....कुछ आश्यार

>> Thursday, May 8, 2008

मुहब्बत का फ़र्ज़ न निभा पाओगे,
गर रूठ गया कोई तो न मना पाओगे,
ये मुहब्बत नही है बोझ है काँटों का,
ज्यादा देर तलक ऐ दोस्त इसको न उठा पाओगे।

हो जायेंगे छलनी ये पैर यूँही चलते चलते,
ये गरम पत्थरों का रसता है तुम भी झुलस जाओगे।

यूं तो होता है असर दुआओं में भी सुना हमने भी है,
मगर जब माशूक को ख़ुदा कहोगे तो ख़ुदा को क्या मुँह दिखाओगे।

हज़ारों ग़म हैं इस इश्क में समझा रहा हूँ मैं,
क्या मेरे पाँव के छालों से कुछ सबक न पाओगे।

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